
इसी दौरान वे हिंद के बुज़ुर्ग नेता दादाभाई नौरोजी से पहली बार मिले। युवक मोहनदास के लिये दादाभाई प्रेरणा-मूर्त्ति बन गये। एम.के. गांधी परीक्षा में सफल हुए और 10 जून, 1891 को बैरिस्टर बने। विचार एवं वाणी-स्वातंत्र्य और बौद्धिक प्रवृत्तियों के इस युग में गांधी जी का तीन साल का विलायत का निवास उनके लिये महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुआ। पांच जुलाई के तूफ़ानी समुद्र वाले दिन बैरिस्टर मोहनदास गांधी बम्बई पहुंचे, मगर घर लौटने की उनकी सारी ख़ुशी गहरे ग़म में बदल गयी। प्यारी मां, जिससे मिलने के लिये वो अधीर थे, चल बसी थी। बम्बई में गांधी जी कवि राजचंद्र के सम्पर्क में आये। उन्होंने गांधी जी को मुक्त कर दिया और उनके आध्यात्मिक मार्गदर्शक बने। वकालत करने, अदालतों का अनुभव लेने और हिंदुस्तानी क़ानून का अभ्यास करने के लिये बैरिस्टर गांधी ने बम्बई सदर अदालत में सनद की दरख़्वास्त दी। काफ़ी काम न मिलने से वे निराश होकर राजकोट चले गये। पोरबंदर की एक व्यापारी पैड़ी की ओर से मुक़दमा लड़ने गांधी जी एक साल के इक़रारनामे पर अप्रैल, 1893 में अफ्रीक़ा के लिये रवाना हुए। एक महीने के सफ़र के बाद, वे डरबन पहुंचे। वहां की रंगभेद की नीति से गांधी जी स्तब्ध रह गये, उनके हृदय को आघात पहुंचा। कुली-बैरिस्टर कहलाने वाले गांधी जी को डरबन की अदालत में पगड़ी उतारने का हुक्म दिया गया। ये अपमान गांधी जी से बर्दाश्त न हुआ और वो अदालत छोड़कर चले गये। अख़बारों ने उन्हें बिन बुलाया मेहमान कहा। रंगभेद के कारण उनको मार खानी पड़ी और घोर अपमान सहने पड़े। फिर भी गोरे हमलाख़ोरों के ख़िलाफ़ उन्होंने शिकायत दाख़िल नहीं की। अफ्रीक़ा के निवास के दिनों में उनकी आध्यात्मिक भावना तीव्र होती गयी, उन्होंने विविध धर्मों का अध्ययन किया और संयम अपनाया। टॉल्स्ाटाय की पुस्तक, ‘वैकुंठ तुम्हारे हृदय में है’ पढ़कर वे झूम उठे।



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जीवनवृत्त
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महात्मा गांधी
प्यार से बापू कहे जाने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने लंदन में एक बैरिस्टर के तौर पर अपने जीवन की शुरुआत की। दक्षिण अफ्रीका में हुए रंगभेद के शर्मनाक अनुभवों के बाद वे अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ ब्रिटिश उपनिवेश विरोधी आंदोलन में उतर पड़े और उन्होंने सत्याग्रह नाम के अहिंसात्मक अस्त्र से, जो लड़ाई छेड़ी उसके नतीजे चकित कर देने वाले थे। गांधी जी ने करोड़ों हिंदुस्तानियों को प्रेरित करके स्वाधीनता संग्राम के लिये एकजुट किया। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को मध्यवर्ग की एक सुधारवादी पार्टी से बदलकर एक मज़बूत जन आंदोलनों की पार्टी बनाया। गांधी जी का पक्का विश्वास था कि आर्थिक आत्मनिर्भरता के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता व्यर्थ है। उन्होंने द्ररिद्रनायारण यानी ग़रीबों में भी सबसे ग़रीब को अपने सरोकारों का केंद्र बनाया और भारत को छुआछूत के अभिशाप से मुक्ति दिलाने के प्रयास किये। विभाजन के बाद एक धर्मांध के हाथों वे शहीद हुए। |
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कलकत्ता कॉर्पोरेशन की ओर से सम्मान समारोह में भाषणप्रार्थना सभा के बाद भाषण (15/47) महात्मा गांधी का जीवन और दर्शन |
जीवन-वृत्त
1869, October 2
Birth of Mohandas Karamchand Gandhi in Kathiawar, Porbandar
1883, October
Married to Kasturbai
1887, October
Passed Matriculation exam from Ahmedabad Centre
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